लखनऊ/काकोरी
19 दिसम्बर 2018
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में काकोरी क्रांति के अमर शहीदों को दी गई श्रद्धांजलि व शहीदों की याद में किया गया मेले का आयोजन, इस मौके पर मौजूद रहे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक व, जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा, व सांसद कौशल किशोर ने दी शहीदों को श्रद्धांजलि।
इस घटना के एक महीने के अंदर करीब 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार किए गए क्रांतिकारियों में स्वर्ण सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, दुर्गा भगवती चंद्र वोहरा, रोशन सिंह, सचींद्र बख्शी, चंद्रशेखर आजाद, विष्णु शरण डबलिश, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुंदी लाल, शचींद्रनाथ सान्याल एवं मन्मथनाथ गुप्ता शामिल थे। उनमें से 29 के अलावा बाकी को छोड़ दिया गया। 29 लोगों के खिलाफ स्पेशल मैजिस्ट्रेट की अदालत में मुकदमा चलाया गया।
अप्रैल, 1927 को अंतिम फैसला सुनया गया। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई। जिनलोगों पर मुकदमा चलाया गया उनमें से कुछ को 14 साल तक की सजा दी गई। दो ने सरकारी गवाह बनना स्वीकार कर लिया था, इसलिए उनको माफ कर दिया गया। दो और क्रांतिकारी को छोड़ दिया गया था। चंद्रशेखर आजाद किसी तरह फरार होने में कामयाब हो गए थे लेकिन बाद में एक एनकाउंटर में वह शहीद हो गए
जिन चार क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी, उनको बचाने की काफी कोशिश की गई। मदन मोहन मालवीय ने उनके बचाव के लिए अभियान शुरू किया और भारत के तत्कालीन वायसराय एवं गवर्नर जनरल एडवर्ड फ्रेडरिक के पास दया याचिका भेजी। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन चारों को फांसी देने का फैसला कर लिया था। उनकी दया याचिका को कई बार खारिज कर दिया गया। 17 दिसंबर, 1927 को राजेंद्र लाहिड़ी को पहले फांसी दी गई। फिर 19 दिसंबर, 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दी गई थी।
19 दिसम्बर 2018
काकोरी कांड के शहीदों को दी गई श्रद्धांजलि
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में काकोरी क्रांति के अमर शहीदों को दी गई श्रद्धांजलि व शहीदों की याद में किया गया मेले का आयोजन, इस मौके पर मौजूद रहे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक व, जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा, व सांसद कौशल किशोर ने दी शहीदों को श्रद्धांजलि।
इस घटना के एक महीने के अंदर करीब 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार किए गए क्रांतिकारियों में स्वर्ण सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, दुर्गा भगवती चंद्र वोहरा, रोशन सिंह, सचींद्र बख्शी, चंद्रशेखर आजाद, विष्णु शरण डबलिश, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुंदी लाल, शचींद्रनाथ सान्याल एवं मन्मथनाथ गुप्ता शामिल थे। उनमें से 29 के अलावा बाकी को छोड़ दिया गया। 29 लोगों के खिलाफ स्पेशल मैजिस्ट्रेट की अदालत में मुकदमा चलाया गया।
अप्रैल, 1927 को अंतिम फैसला सुनया गया। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई। जिनलोगों पर मुकदमा चलाया गया उनमें से कुछ को 14 साल तक की सजा दी गई। दो ने सरकारी गवाह बनना स्वीकार कर लिया था, इसलिए उनको माफ कर दिया गया। दो और क्रांतिकारी को छोड़ दिया गया था। चंद्रशेखर आजाद किसी तरह फरार होने में कामयाब हो गए थे लेकिन बाद में एक एनकाउंटर में वह शहीद हो गए
जिन चार क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी, उनको बचाने की काफी कोशिश की गई। मदन मोहन मालवीय ने उनके बचाव के लिए अभियान शुरू किया और भारत के तत्कालीन वायसराय एवं गवर्नर जनरल एडवर्ड फ्रेडरिक के पास दया याचिका भेजी। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन चारों को फांसी देने का फैसला कर लिया था। उनकी दया याचिका को कई बार खारिज कर दिया गया। 17 दिसंबर, 1927 को राजेंद्र लाहिड़ी को पहले फांसी दी गई। फिर 19 दिसंबर, 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दी गई थी।
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