विधायक हराते-हराते, सरकार ही गवां दी
(हेमेन्द्र क्षीरसगर, पत्रकार, लेखक व विचारक)
उन्हें नजरअंदाज ना करों जो तुम्हारी बहुत परवहा करते है, वरना एक दिन पत्थर चुनते-चुनते हीरा गवा दोगें। ये कहावत तब चरितार्थ हुई जब मध्यप्रदेश में विधान सभा चुनाव के परिणाम सामने आए। यहां विधायक हराते-हराते लोगों नेे अपनी सरकार ही गवां दी। वह सरकार हरा दी जिसे बनाये रखना चाहती थी। पर करे कोई और भरे कोई के चक्कर में अपने चेहते शिवराज सिंह चौहान को ही खो दिया। और अब पछताये क्यां जब चिडिय़ा चुक गई खेत। देना था वनवास विधायक को और दे दिये मुख्यमंत्री को। उस मुख्यमंत्री को जिसने पैदा लेने से लेकर मरने तक योजना बनाकर सदा जन कल्याण ही किया। आखिर ! इनसे क्यां खता हुई जो सजा इनको मिली। आज भी प्रदेश की जनता यह मानने को तैयार नहीं हो रही है कि मामा हमारे मुख्यमंत्री नहीं रहे। यह इनके लिए सब्जबाग की तरह लग रहा है लेकिन सच तो सच है इसे मानना ही पड़ेगा कि शिवराज पक्ष में नहीं अपितु विपक्ष में रहकर काम करेंगे।
चलो, कहीं भी रहेंगे पर रहेंगे हमारे साथ। यही सही मायनों में लोकतंत्र है जहां सरकारों का आना-जाना लगा रहता है। दौर में जो याद रहतें है वह दिलों पर राज करते है ऐसे ही आम आदमी के आम नेता है शिवराज। जिनकी कमी आज लोगों को कूट-कूटकर खल रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो शिवराज सिंह ने मध्यप्रदेश को नहीं गवाया बल्कि मध्यप्रदेश ने शिवराज को गवा दिया। इतिहास में ऐसे मौके बिरले ही आए होगें जब एक जननेता की रवानगी के लिए आमजन ने खुशी के बजाए गम बनाया हो। बहरहाल, इसी का नाम तो राजनीति जहां रातों सत्ता बदल जाती है और नायक से खलनायक बनते देर नहीं लगती क्योंकि आज भी हमारे यहां दिमाग से नहीं वरन् दिल से मतदान होता जो सही गलत का चुनाव विचार से कम भावनाओं से ज्यादा करता है।
अलबत्ता, कारण कुछ भी रहे हो जनादेश को नतमस्तक हर हाल में करना पड़ेगा यही वक्त की नजाकत और सच्चाई है। लिहाजा, गिनने चले तो मध्यप्रदेश में अफरशाही, लालफिताशाही, गलत टिकट वितरण, कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, मनगढ़त मांई के लाल तथा मंत्रियों विधायकों और नेतागिरी की पराकाष्ठा इत्यादि बेरूखी की वजह सतारूढ़ दल के लिए हार का सबब बनी। दूसरी ओर लोक लुभावन वादें, सही उम्मीदवारों का चयन, संगठित चुनावी रणनीति और अन्य दलों का आंतरिक समर्थन कांग्रेस के वास्ते सत्ता वापसी का कारक बना जिसके लिए ये बधाई के पात्र बनकर जीत के द्वार तक पहुंचेे। यहां यह देखना यह लाजिमी होगा कि नवगठित सरकार अपने वादे-इरादे पर कितनी खरी उतरती है। उतर जाए तो जनमत के बल्ले-बल्ले नहीं तो भाजपा से महज 5 कदम आगे रही कांग्रेस को 50 कदम पीछे रहने में देर नहीं लगेगी क्योंकि यह पब्लिक है सब जानती बनाना और बिगडऩा भी।
अलबत्ता, कारण कुछ भी रहे हो जनादेश को नतमस्तक हर हाल में करना पड़ेगा यही वक्त की नजाकत और सच्चाई है। लिहाजा, गिनने चले तो मध्यप्रदेश में अफरशाही, लालफिताशाही, गलत टिकट वितरण, कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, मनगढ़त मांई के लाल तथा मंत्रियों विधायकों और नेतागिरी की पराकाष्ठा इत्यादि बेरूखी की वजह सतारूढ़ दल के लिए हार का सबब बनी। दूसरी ओर लोक लुभावन वादें, सही उम्मीदवारों का चयन, संगठित चुनावी रणनीति और अन्य दलों का आंतरिक समर्थन कांग्रेस के वास्ते सत्ता वापसी का कारक बना जिसके लिए ये बधाई के पात्र बनकर जीत के द्वार तक पहुंचेे। यहां यह देखना यह लाजिमी होगा कि नवगठित सरकार अपने वादे-इरादे पर कितनी खरी उतरती है। उतर जाए तो जनमत के बल्ले-बल्ले नहीं तो भाजपा से महज 5 कदम आगे रही कांग्रेस को 50 कदम पीछे रहने में देर नहीं लगेगी क्योंकि यह पब्लिक है सब जानती बनाना और बिगडऩा भी।
इसीलिए जनता की भलाई में सर्वस्त्र न्योछावर करने की बारी अब कांगेंस की है वह क्यां कर गुजरती है ये आने वाला वक्त ही बताएंगा अभी से इसकी चर्चा करना नागवार है। इसमें एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाने की जवाबदारी भाजपा को उठानी पड़ेगी क्योंकि जनता ने इन्हें भी नकारा नहीं है। हां संख्या बल में जरूर थोड़ा सा कम कर दिया है, जिसकी चौकीदारी की जिम्मेदारी शिवाराज सिंह चौहान ने ले रखी है। इन शुभ संकेतों से दोनों ही हालातों में प्रदेश की 7.27 करोड़ जनता का भला और सूबे का विकास ही होगा। काश! ऐसा हो जाए यह तो सोने पे सुहागा हो जाएगा और देश के लिए एक मिशाल। जहां पक्ष व विपक्ष दोनों कांधे से कांधा मिलाकर बहुमत के मान-सम्मान के लिए है तत्पर। बानगी में स्वच्छ और स्वस्थ लोकतंत्र के असली हकदार कहलाएगें हमारे राजनीतिक पहरेदार। तब जाकर हार-जीत पर कोई असर नहीं पड़ेगा और सत्ता के साथ व्यवस्था बदलते रहेंगी येही हम सबकी चाहत हैं।
(हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व विचारक)
(हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व विचारक)
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