रिपोर्ट--मान सिंह
तालाबों व झीलों का अस्तित्व खतरे में,प्राणी मात्र के लिए होगा बड़ा संकट
बीघापुर,उन्नाव।
कभी झीलें व तालाब देश की जीवन रेखा का हिस्सा हुआ करते थे,लोग इन्हीं तालाबों व झीलों में संग्रहीत वर्शा जल से वर्श पर्यन्त पीने व स्नान करने तथा फसलों की सिंचाई का कार्य करते थे।लबालब भरे तालाब व झीलें गाँवों की प्राकृतिक सुन्दरता में चार चाँद लगा दिया करते थे।तालाबों व झीलों के स्वच्छ जल में जल क्रीड़ा करते बच्चे ऐसा लगता था मानो स्वयं भगवान कृश्ण ग्वाल बालों के संग एक बार फिर अवतरित हुए हैं।तालाबों तथा झीलों के आस पास हरे भरे बाग बगीचे अत्यंत मनोरम दृष्य बनाते थे।अनेकों रंग बिरंगे पक्षियों का कलरव वातावरण में घुल कर मन को आनंदित करता था। परन्तु आधुनिकता की अंधी दौड़ व विकास की अनियोजित प्रक्रिया ने तालाबों,झीलों व जंगलों का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया है। तालाबों का अस्तित्व समाप्त करने में जहां मानव स्वयं जिम्मेदार है वहीं प्रकृति भी रूठ चुकी है।क्षेत्र में कम वर्शा होने से तालाब सूखे रहने के कारण उन पर लोगों पाट पाट कर अवैध कब्जे कर लिए।
नगर पंचायत बीघापुर में एक ऐसी प्राचीन झील व ऐसे कई प्राचीन तालाब हैं जो किसी तरह अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। कस्बे के बुजुर्ग गौरी शंकर, पुल्ली बाजपेई, सुभाश बाजपेयी, अम्बिका चैधरी, सोहन लाल सिंह बताते हैं कि कस्बे के मध्य से बहने वाली भंड़रा झील जिसकी लम्बाई लगभग 800 मीटर व चैड़ाई 200मीटर, यह झील कब अस्तित्व में आई इसके विशय में किसी को कोई जानकारी नहीं है।कस्बे को दो भागों में बांटने वाली इस भंड़रा झील में कभी स्वच्छ निर्मल जल प्रवाहित हुआ करता था। जिसमें साइबेरियन पक्षी सात समुन्दर पार से जाड़े के दिनों में प्रवास करने आते थे। कस्बे के लोगों की जीवन रेखा यही झील हुआ करती थी। कस्बे को दोनों छोर से जोड़ने के लिए आज से लगभग 300 वर्श पूर्व इस झील के बीचो बीच एक पुल का निर्माण कराया गया था। जिसके माध्यम से इस पार से उस पार लोगों का आवागमन सुलभ हुआ। अन्यथा इसके पूर्व बताया जाता है कि आने जाने के लिए नाव का प्रयोग ही होता था । पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर बहने वाली इस झील के तट पर एक शिवालय भी स्थित है।जिसके विशय में जानकारी नहीं हो सकी कि कब इसका निर्माण हुआ। कभी इस झील के तट पर बैठ कर प्रकृति के सुन्दरतम नजारे लोगों का मन मोहते रहे हैं।यह झील साक्षी है उन लोकगीतकारों की जिन्होंने इस के तट पर बैठ कर प्रकृति का सुन्दर चित्रण किया। होली में फाग की टोलियां इसी झील के पुल पर होली खेलती थीं। ये सुन्दर,निर्मल, स्वच्छ प्राकृतिक सुन्दरता से आच्छादित जिसमें सूर्य की उदय रश्मि सर्वप्रथम अपनी आभा बिखेरती थीं, आज इसकी दुर्गति देख कर ऐसा कहना बेमानी लगता है कि यह झील इतनी सुन्दर व स्वच्छ कभी रही होगी? लगभग 800 मीटर लम्बी व 200 मीटर चैड़ी झील अब लगभग 200 मीटर लम्बी व 50 मीटर चैड़ी रह गई होगी।स्वच्छ जल की जगह अब लगभग पूरे कस्बे का गटर व सीवेज का पानी इस झील में डाला जा रहा है। कभी लोगों को जीवन देने वाली भंड़रा झील आज खुद के जीवन की अंतिम सांसे ले रही है। चारों ओर से अवैध कब्जेदारों ने उस पर कब्जे कर लिए हैं।इस झील से तीन बड़े प्राचीन तालाब भी क्रमवार जुड़े थे, जिनमें शीतला तालाब, नागेश्वर तालाब व गोदावलेश्वर तालाब हैं। जो इस झीेल से जुड़ कर इसको कई किमी का विस्तार देते थे और लोगों के लिए नहाने व पशु पक्षियों के लिए पीने को पानी उपलब्ध कराते थे। आज वे तालाब भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हुए अतिक्रमणकरियों के आगे नतमस्तक नजर आ रहे हैं।क्या इनके संरक्षण के लिए नगर पंचायत प्रशासन कोई कदम उठाएगा यह भविष्य के गर्भ में ही है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें