आकांक्षा मिश्रा एम०जे०एम०सी० कानपुर यूनिवर्सिटी
बेटियों की सुरक्षा।
इतने दिनों से जो मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामले देशभर से आ रही थीं जिससे पूरे देश मे आक्रोश फैला हुआ था लोगों के अंदर सिर्फ यह ही आवाज थी कि दोषियों को सख्त सजा का प्रावधान हो। इन सबके आक्रोश को मद्देनजर में रखकर सरकार ऐसे मामलों में पीडिता को तुरंत न्याय दिलाने और दोषियों को सजा दिलाने के लिए एक अध्यादेश लाने जा रही हैं। और ये पीड़िताओं एवं उसके परिवार वालों के लिए खुश खबरी हैं। लेकिन इस नियम को लाने के लिए इतनी देरी क्यों कि गई। देर से ही सही लेकिन मोदी सरकार ने बेटियों की सुरक्षा के लिए कुछ सोचा तो क्योंकि जब एक पीड़िता के साथ दुष्कर्म होता हैं और उस पीड़िता को न्याय नहीं मिलता हैं इसके साथ ही साथ दुष्कर्मी खुलेआम घूमता है। तो ऐसे में उस पीड़िता पर क्या गुजरती होगी ये सिर्फ वह मासूम बच्ची ही जानती होंगी ये सारे दर्द उस बच्ची को उस उम्र में मिले होते हैं जो उम्र उसके खेलने कूदने की होती हैं। न जाने कितने अभी भी दुष्कर्म के मामले सामने ही नहीं आ पाते हैं सिर्फ इसलिए या तो उनको समाज का डर होता हैं या फिर उनके पास इतना पैसा नहीं होता हैं जिससे वह कोर्ट कचहरी और थाने के चक्कर लगा सकें। इसलिए उन मासूम बच्चियों को चुप रहने को बोल दिया जाता हैं। पर ये कहा का न्याय हैं जो भी अब दुष्कर्मी को फाँसी की सजा का प्रावधान किया गया है वह एक बहुत अच्छा प्रावधान है। लेकिन ये प्रावधान कहा तक सफल रहेगा ये तो अब आने वाला वक़्त ही बतायेगा क्योंकि पहले भी इसतरह के बहुत से प्रावधान आ चुके है लेकिन सब लागू होने से पहले ही विफल हो जाते थे। सिर्फ कुछ दिन मोमबत्ती मोर्चा, धरना, आक्रोश कर देने से ही सिर्फ पीड़िता के जख्मों को आराम नहीं दिया जा सकता हैं। इसके साथ ही साथ उसको एक सम्मानित समाज और न्याय की आवश्यकता है। जिससे वो अपने ऊपर हुए दुष्कर्म को आसानी से भूल सकें। मेरी बस एक ही निवेदन हैं देश की जनता से की अगर कोई भी आपके आस-पास रहने वाली ऐसी बच्ची हैं जिसके साथ दुष्कर्म हुआ हो तो उस बच्ची को पीड़िता की नजर से नहीं बल्कि उसको एक बच्ची की नजर से ही देखना क्योंकि जब किसी भी बच्ची के साथ कोई भी अपराध होता हैं तो वो लोगों के सामने नजरे चुराने लगती हैं उसका स्वभाव और बच्चों से थोडा अलग हो जाती हैं।
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