हेमेन्द्र क्षीरसागर, लेखक व विचारक
दरकार! बैहर को जिला तो बना दो सरकार------------------------------
( हेमेन्द्र क्षीरसागर, लेखक व विचारक )
दूरियां कितनी दूरी बढा देती है, ये बात तब समझ में आती हैं। जब संविधान
की 5 वीं अनुसूची में शामिल राष्ट्रीय मानव बैगा व दिन-दुनिया से
बेखबर,लाचार दूर-सुदूर वासी आहार, उपचार, नवाचार, रोजगार, कारोबार,
बाजार, समाचार, संचार,सवार और सरकार से महरूम रहते है। यदि फासले नहीं
रहते तो मंजर यह नहीं होता। निस्पृह, वेदना में जिदंगी रेंग रही है।
बकौल, यहां सुध लेने वाला कोई नजर ही नहीं आता। जिन पर भी बाजी लगाई वह
कमजोर राजनैतिक इच्छा शक्ति के दगाबाज निकले। तू-तू, मैं-मैं की
नुरा-कुश्ती में दुखहारी सत्ता के निवाले बन गए। बावजूद पेट नहीं भरा तो
अबकी बार और एक बार का बेसुरा राग अलापने में भी कोई कोर कसर नहीं छोडी।
जी, हां! बिल्कुल! आप सही समझे हम बात कर रहें मध्यप्रदेश के जिला
बालाघाट से 67 किमी दूरस्थ 1895 में बनी तहसील व आज के राजस्व अनुविभाग
बैहर की जो बरसों से जिला बनने की कतार में सरकार से गुहार लगाते-लगाते
नेपथ्य में पहुंच गया। अबूझ,ना जाने क्यों? जिम्मेदार बैहर से इतनी बैर
रखे हुए है कि मुद्दत से उठी मांग बैहर को जिला बनाओ-बनाओं के साथ वादा
खिलाफी करते आ रहे है। लिहाजा,स्वच्छ व स्वस्थ लोकतंत्र में शासन-प्रशासन
का विकेन्द्रीरकरण के बजाय केन्द्रीकरण रहना स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का
गला घोटने के समान है। पीडा का शिकार कौन हो रहा है? मुख्यधारा से
वंचित, शोषित, पीडित तथा अशिक्षित आदिवासी व पिछडा वर्ग, जिसकी भलाई
की दुहाई देते नहीं थकते हमारे रहनुमा।
सीधी सी बात है! सत्ता में भागीदारी के मुकाबले हिस्सेदारी नहीं होगी तब
तक बिरादरी में बराबरी नहीं होगी। यकीन नहीं आता तो जाकर देखे वनांचल
बैहर के दुगर्म अंचल का हाल समझ में आ जाएगा कि जीना किसे कहते है।
सामान्य जीवन तो छोडिए! पेट में रोटी, बदन पर कपडा और सर बचाने झोपडी तक
बेनसीब है। आज वह अपने वजूद के वास्ते जिला बनाने की फरियाद करते है तो
लकीर के फकीर, कायदे-कानून तथा धन का रोना रोते है। बदस्तुर, सियासत
चमकाने और बचाने के इरादे से नियमों की धज्जियां उडाने व सरकारी खजाने को
खैरात में बाटने कोई गुरेज नहीं करते। यह दो राही रवैया क्षेत्रवाद के
अलावे भेदभाव की पराकाष्ठा को परिलच्छित करता है।
जाहिर, तौर पर आज भी जिला बनने की बाट जो रहे बैहर में 2 विधान सभा 3
तहसील समेत आदिवासी बाहुल्य जनपद पंचायते बैहर, बिरसा और परसवाडा की 175
ग्राम पंचायतों के 437 राजस्व ग्राम, 88 वन ग्राम तथा 22 वीरान गांवों
में तकरीबन 6.5 लाख ग्रामीणजन है। इधर, नगर पंचायत बैहर व नगर पालिका
परिषद् मोहगांव के नगरिय क्षेत्र में दो लाख के लगभग लोगों का रहन-बसेरा
है। सुरम्य वादियों के बीच विश्व प्रसिद्ध कान्हा अभ्यारण की छटा देखते
ही बनती है। क्यां बाघ, क्या बायसन, क्या काले हिरण की अटकेलियों में साल
के वृक्ष के नीचे नाचते मोर मन मोह लेते है। तृश्णा, पुण्य सलिला बंजर,
बाघ, तनौर, जमुनिया, नाहरा, मानकुंवर और सोनदि के पावन जल से तृप्त है।
आवरण में160 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ, 2 लाख 51 हजार 571 वर्ग
हैक्टेयर का क्षेत्रफल दुर्लभ पहाडियों और बीहड जंगलों के बावजूद डाबरी
से कुमनगांव, सोनेवानी से सालेटेकरी, मंडई से सरेखा और सोनगुड्डा से डोरा
की परिधि का जन-जन से गहरा नाता है। अभिभूत, बिरसी हवाई पट्टी की उडान के
साथ एशिया की सबसे बडी उत्तम ताम्र परियोजना मलाजखण्ड तथा सर्वोच्च कोटि
के मैग्नीज उकवा की स्थली भी इसी सरजमीं पर है। जहां लोहा, तांबा,
बाॅक्साइड, चूना, पत्थर, अभ्रक, डोलामाईट, की प्रचुर खनिज संपदाऐं देश की
तिजोरी भर रही है। वहीं धान, कोदो, कुटकी, कुर्था, सरसों, गेंहू, तुवर,
चार बीजी, वनफल-औषध और भुट्टा से गण-मन की भूख मिटती है।
मसलन, मूलभूत समस्याओं से ग्रसित और विकास को तरसता बैहर जिला बनने का
प्रबल हकदार है। अमलीजामा से जिला स्तरीय अस्पताल, न्यायालय, सरकारी
दफ््तर, शिक्षण संस्थान, उद्योगो का जाल, बहुयामी प्रकल्पों, तकनीकी
शिक्षा केन्द्रों की सुविधाओं सहित आवागमन सुलभ होगा। बेहतर, लगे हाथ
वक्त की दरकार! में बैहर को जिला तथा परसवाडा व बिरसा को राजस्व अनुभाग
का दर्जा देकर गढी, सोनगुड्डा और उकवा को तहसील तो बना दो सरकार। सरोकार
में मेरी सरकार, मेरे द्वार सराबोर होगी।
दरकार! बैहर को जिला तो बना दो सरकार------------------------------ ---------------------
( हेमेन्द्र क्षीरसागर, लेखक व विचारक )दूरियां कितनी दूरी बढा देती है, ये बात तब समझ में आती हैं। जब संविधान
की 5 वीं अनुसूची में शामिल राष्ट्रीय मानव बैगा व दिन-दुनिया से
बेखबर,लाचार दूर-सुदूर वासी आहार, उपचार, नवाचार, रोजगार, कारोबार,
बाजार, समाचार, संचार,सवार और सरकार से महरूम रहते है। यदि फासले नहीं
रहते तो मंजर यह नहीं होता। निस्पृह, वेदना में जिदंगी रेंग रही है।
बकौल, यहां सुध लेने वाला कोई नजर ही नहीं आता। जिन पर भी बाजी लगाई वह
कमजोर राजनैतिक इच्छा शक्ति के दगाबाज निकले। तू-तू, मैं-मैं की
नुरा-कुश्ती में दुखहारी सत्ता के निवाले बन गए। बावजूद पेट नहीं भरा तो
अबकी बार और एक बार का बेसुरा राग अलापने में भी कोई कोर कसर नहीं छोडी।
जी, हां! बिल्कुल! आप सही समझे हम बात कर रहें मध्यप्रदेश के जिला
बालाघाट से 67 किमी दूरस्थ 1895 में बनी तहसील व आज के राजस्व अनुविभाग
बैहर की जो बरसों से जिला बनने की कतार में सरकार से गुहार लगाते-लगाते
नेपथ्य में पहुंच गया। अबूझ,ना जाने क्यों? जिम्मेदार बैहर से इतनी बैर
रखे हुए है कि मुद्दत से उठी मांग बैहर को जिला बनाओ-बनाओं के साथ वादा
खिलाफी करते आ रहे है। लिहाजा,स्वच्छ व स्वस्थ लोकतंत्र में शासन-प्रशासन
का विकेन्द्रीरकरण के बजाय केन्द्रीकरण रहना स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का
गला घोटने के समान है। पीडा का शिकार कौन हो रहा है? मुख्यधारा से
वंचित, शोषित, पीडित तथा अशिक्षित आदिवासी व पिछडा वर्ग, जिसकी भलाई
की दुहाई देते नहीं थकते हमारे रहनुमा।
सीधी सी बात है! सत्ता में भागीदारी के मुकाबले हिस्सेदारी नहीं होगी तब
तक बिरादरी में बराबरी नहीं होगी। यकीन नहीं आता तो जाकर देखे वनांचल
बैहर के दुगर्म अंचल का हाल समझ में आ जाएगा कि जीना किसे कहते है।
सामान्य जीवन तो छोडिए! पेट में रोटी, बदन पर कपडा और सर बचाने झोपडी तक
बेनसीब है। आज वह अपने वजूद के वास्ते जिला बनाने की फरियाद करते है तो
लकीर के फकीर, कायदे-कानून तथा धन का रोना रोते है। बदस्तुर, सियासत
चमकाने और बचाने के इरादे से नियमों की धज्जियां उडाने व सरकारी खजाने को
खैरात में बाटने कोई गुरेज नहीं करते। यह दो राही रवैया क्षेत्रवाद के
अलावे भेदभाव की पराकाष्ठा को परिलच्छित करता है।
जाहिर, तौर पर आज भी जिला बनने की बाट जो रहे बैहर में 2 विधान सभा 3
तहसील समेत आदिवासी बाहुल्य जनपद पंचायते बैहर, बिरसा और परसवाडा की 175
ग्राम पंचायतों के 437 राजस्व ग्राम, 88 वन ग्राम तथा 22 वीरान गांवों
में तकरीबन 6.5 लाख ग्रामीणजन है। इधर, नगर पंचायत बैहर व नगर पालिका
परिषद् मोहगांव के नगरिय क्षेत्र में दो लाख के लगभग लोगों का रहन-बसेरा
है। सुरम्य वादियों के बीच विश्व प्रसिद्ध कान्हा अभ्यारण की छटा देखते
ही बनती है। क्यां बाघ, क्या बायसन, क्या काले हिरण की अटकेलियों में साल
के वृक्ष के नीचे नाचते मोर मन मोह लेते है। तृश्णा, पुण्य सलिला बंजर,
बाघ, तनौर, जमुनिया, नाहरा, मानकुंवर और सोनदि के पावन जल से तृप्त है।
आवरण में160 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ, 2 लाख 51 हजार 571 वर्ग
हैक्टेयर का क्षेत्रफल दुर्लभ पहाडियों और बीहड जंगलों के बावजूद डाबरी
से कुमनगांव, सोनेवानी से सालेटेकरी, मंडई से सरेखा और सोनगुड्डा से डोरा
की परिधि का जन-जन से गहरा नाता है। अभिभूत, बिरसी हवाई पट्टी की उडान के
साथ एशिया की सबसे बडी उत्तम ताम्र परियोजना मलाजखण्ड तथा सर्वोच्च कोटि
के मैग्नीज उकवा की स्थली भी इसी सरजमीं पर है। जहां लोहा, तांबा,
बाॅक्साइड, चूना, पत्थर, अभ्रक, डोलामाईट, की प्रचुर खनिज संपदाऐं देश की
तिजोरी भर रही है। वहीं धान, कोदो, कुटकी, कुर्था, सरसों, गेंहू, तुवर,
चार बीजी, वनफल-औषध और भुट्टा से गण-मन की भूख मिटती है।
मसलन, मूलभूत समस्याओं से ग्रसित और विकास को तरसता बैहर जिला बनने का
प्रबल हकदार है। अमलीजामा से जिला स्तरीय अस्पताल, न्यायालय, सरकारी
दफ््तर, शिक्षण संस्थान, उद्योगो का जाल, बहुयामी प्रकल्पों, तकनीकी
शिक्षा केन्द्रों की सुविधाओं सहित आवागमन सुलभ होगा। बेहतर, लगे हाथ
वक्त की दरकार! में बैहर को जिला तथा परसवाडा व बिरसा को राजस्व अनुभाग
का दर्जा देकर गढी, सोनगुड्डा और उकवा को तहसील तो बना दो सरकार। सरोकार
में मेरी सरकार, मेरे द्वार सराबोर होगी।
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