आकांक्षा मिश्रा(कानपुर यूनिवर्सिटी)
आजादी के इतने सालों के बाद भी आज भी देश में लोगों की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आये।
भारत एक ऐसा देश हैं जिसकी संस्कृति की चर्चा हर किसी की जुबान पर होती हैं। यहाँ की महिलाओं को देवी माना जाता हैं। जी हाँ , मैं इसी भारत की बात कर रही हूं जिसे हम भारत माता के नाम से पुकारते हैं । पर बहुत अफसोस होता हैं कि न जाने कहा ये सभ्य संस्कृति खो गयी हैं हमारे देश से किसकी नजर लग गई हमारे देश की बेटियों को जो अपने ही देश में सुरक्षित नहीं हैं। मैं बात कर रही हूं उन बेटियों की जिनकी जिंदगी को उन लड़कों ने नरक बना दी जिन्होंने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी। क्यों क्या उन लड़कों ये यहाँ माँ - बहन नहीं हैं? क्या उसने एक माँ की कोख से जन्म नहीं लिया अगर लिया है तो कैसे हैवानियत की सारी हद पार कर सकता हैं एक बार भी उसकी आत्मा काँपी नही हैवानियत करने से पहले।
निर्भया, दिव्या, ऎश्वर्या को लोग पूरी तरह भुला नहीं पाए थे। कि एक और मामला सामने आ गया जो सिर्फ 8 साल की मासूम बच्ची थी ,आसिफा जम्मू में कठुआ जिले के रसाना गांव की रहने वाली थी। जिसको उसकी दुगनी उम्र के लोगों ने उसका बलात्कार किया और तब तक करते रहे जब तक उस मासूम ने अपनी आखिरी सांसे गिननी नहीं शुरू कर दी। अपनी जिंदगी की आखिरी सांस तक वो उन दरिंदों से लड़ती रही और आखिरकार वो हार गई उन दरिंदों से और सबको अलविदा बोल कर चली गयी। अफसोस , की आसिफा के लिए कोई कुछ नहीं कर पाया क्यों हमारे समाज मे लड़कियों के लिए कोई न्याय नहीं बनाया गया है। लड़कियों को क्यों ऐसे ही मारने को छोड़ दिया जाता हैं। क्या गुजरी होगी आसिफा के माता पिता पर और उस मासूम पर क्योंकि जब उसके खेलने कूदने, पढ़ने-लिखने की उम्र थी तो वो उन दरिदों से लड़ रही थी। क्या अभी भी हमारे समाज मे लड़कियों के प्रति कोई जागरूकता नहीं आई अगर नहीं आई तो एक दिन ऐसा आएगा जब एक कि लड़की नहीं होगी और बाहर विदेशो से लाना अपने लिए बीबी और फिर तैयार करना वृद्धाआश्रम जहां रहना जाकर क्योंकि जब लड़के अपने माता - पिता को घर से बाहर निकालते हैं तो सिर्फ एक बेटी ही ऐसी होती हैं जो पराई होकर भी उनका साथ नहीं छोड़ती हैं अपने माँ-बाप को अपने साथ लेकर जाती हैं। मेरी गुजारिश हैं उन माँ-बाप से की हमारी सरकार कुछ नहीं करेगी बेटियों के लिए लेकिन हम कर सकते हैं। अपनी बेटी को ऐसा बनाओ की वो दरिंदों से लड़ सके बिना डरे क्योंकि अगर बेटी के साथ माँ- बाप का साथ हो तो दुनिया की किसी भी दरिंदो का वो मुकाबला कर सकती हैं बेटा- बेटी को एक जैसा समझो कोई भेदभाव नहीं करो। अपने बेटों को वो संस्कार दो जो वो किसी भी लड़की को बुरी नजर से न बल्कि उसमे भी उसको एक बहन ही नजर आए।
जो भी बेटियां दरिंदों की शिकार हुई हैं उन दरिंदों को फाँसी की सजा दी जानी चाहिए क्योंकि ये बहुत ही शर्मनाक है।
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