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"मौत एक बार जब आना है तो डरना क्या है! हम इसे खेल ही समझा किये मरना क्या है?

शहीद अशफ़ाक़ुल्ला को उनके 118 वें जन्मदिन पर हज़ारों सलाम।

"मौत एक बार जब आना है तो डरना क्या है!
हम इसे खेल ही समझा किये मरना क्या है?


वतन हमारा रहे शादकाम और आबाद,
हमारा क्या है अगर हम रहे, रहे न रहे।।"
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, (जन्म:22, अक्टूबर,१९००, मृत्यु:19, दिसंबर,१९२७) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे।वे मजबूत क़द काठी के थे जिसकी वजह से उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और १९ दिसम्बर सन् १९२७ को उन्हें फैज़ाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तख़ल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे।

अशफ़ाक़उल्ला ख़ां का आह्वान:

कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे।
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर हीं कटा देंगे॥

हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी ज़ुल्मों से।
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे॥

बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का।
चरख़े से ज़मीं को हम, ता चर्ख़ गुंजा देंगे॥

परवा नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की।
है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे॥

उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे।
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे॥

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीक़ा।
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे॥

दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं।
ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे॥

मुसाफ़िर जो अंडमान के, तूने बनाए, ज़ालिम,
आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे।

अमर शहीद अशफ़ाक़ उल्ला खाँ (Ashfaqullah Khan) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख क्रान्तिकारियों में से एक थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और १९ दिसम्बर सन् १९२७ को उन्हें फैज़ाबाद जेल में फाँसी दे दिया गया।

 भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में बिस्मिल और अशफाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का बेजोड़ उदाहरण है। अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भारत के ऐसे पहले मुस्लिम थे, जिन्हें किसी षड़यंत्र के तहत फ़ाँसी की सज़ा दी गई थी।

अपनी भावनाओं का इज़हार करते हुए अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ ने लिखा था कि-
ज़मीं दुश्मन, ज़मां दुश्मन, जो अपने थे पराये हैं, सुनोगे दास्ताँ क्या तुम मेरे हाले परेशाँ की।

उनकी डायरी से कुछ शब्द:

किये थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाये।
ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना॥

मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं।
जवां तुम हो लबे-बाम आ चुका है आफताब अपना॥

अशफाकुल्ला खान (मृत्यु से एक रात्रि पहले राम प्रसाद बिस्मिल के साथ)

जाऊंगा ख़ाली हाथ मगर ये दर्द साथ हीं जाएगा।
जाने किस दिन हिंदुस्तान, आज़ाद वतन कहलाएगा॥

बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं फिर आऊंगा फिर आऊंगा।
फिर आकर ऐ भारत माँ तुझको आज़ाद कराऊंगा॥

जी करता है, मैं भी कह दूँ ,पर मज़हब से बंध जाता हूँ ।
मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूँ ॥

हाँ ख़ुदा अगर मिल गया कहीं, अपनी झोली फैला दूँगा।
और जन्नत के बदले उससे एक पुनर्जन्म ही माँगूँगा॥

ऐसे बहादुर जांबाज़ हिंदुस्तान के लाल को लाखों सलाम।

जयहिंद, हिंदुस्तान ज़िन्दाबाद।

सैयद शहनशाह हैदर आब्दी
समाजवादी चिंतक-झांसी।
[10/22, 2:18 PM] diwakar: बगहा:-  बगहा नगर क्षेत्र में नैतिक जागरण मंच द्वारा घर घर लगाये जा रहे है चंपा के पौधे।


बगहा संवाददाता दिवाकर कुमार
   

  बगहा:-चंपा के फूल के कारण  जिस क्षेत्र का नाम चंपारण पड़ा।आजादी की अहिंसक क्रांति का श्री गणेश करने वाला और बाल्मीकि की तपोभूमि वाला यह चंपारण क्षेत्र शीघ्र ही अपने नाम को सार्थक करेगा। चंपारण को चंपा के रंग के साथ-साथ उसके  खूबसूरत खुशबू  से सजाने व महकाने का पुरजोर प्रयास नैतिक जनमंच वेलफेयर ट्रस्ट कर रहा है। चंपारण को चंपारण्य बनाने के लिए नैतिक जागरण मंच वेलफेयर ट्रस्ट बगहा ने  गांव से लेकर शहर तक लगभग हर दरवाजे पर चंपा का फूल लगाने का बीड़ा उठाया है। इसी संदर्भ में विगत महीनों में बड़े पैमाने पर चंपा के फूल बांटे गए । अब उन चंपा के  फूलों का निरीक्षण कर उनकी हालत जानने का प्रयास किया जा रहा है। इसी क्रम में जहां पौधे अपनी नई कोपलों के साथ प्रकृति में फल-फूल रहे हैं, उनकी रख रखाव का जायजा लिया जा रहा है तथा जहां पौधे सूख गए हैं या फिर पौधे नहीं लगाए गए थे ।वहां नए चंपा फूल को लगा कर उनके के संरक्षण के उपाय पर जोर दिया जा रहा है। पौधों के सुंदर रख रखाव को देख कर नैतिक जागरण मंच का जी गदगद हो गया ।उनके संरक्षकों   को धन्यवाद मंच ने दिया ।
आप भी चंपारण को चंपा बनाने की मुहीम में अपना  सहयोग दें, तथा चंपा का फूल जरूर अपने दरवाजे पर लगाएं ।जिन लोगों के
दरवाजों पर अभी तक घूमकर चंपा के फूलों का अवलोकन किया गया है ।उनकी सूची इस प्रकार है। आनंद कुमार सिंह सनराइज पब्लिक स्कूल अवसानी शाखा,रवीश कुमार मिश्र मंगलपुर,पारसनाथ जायसवाल मंगलपुर,नंदलाल प्रसाद मलकौली,रामचंद्र पाठक मलकौली,मधुसूदन यादव मलकौली,बिहारी यादव मलकौली,त्रियुगी नारायण शुक्ला मलकौली,असर्फी साह मलकौली,नंदेश पांडे वार्ड आयुक्त  पठखौली,बालकृष्ण पाठक मलकौलीआदि।

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