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आज रात खीर बन जाती है अमृत, धर्म के साथ क्या है शरद पूर्णिमा

आज रात खीर बन जाती है अमृत, धर्म के साथ क्या है शरद पूर्णिमा



जितेन्दर पांचाल 

आज रात खीर बन जाती है
अमृत, धर्म के साथ क्या है
शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व
पुष्णामि चौषधी: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्मक:।। अर्थात गीता में भगवान श्री कृष्ण ने शरद पूर्णिमा के चंद्रमा के लिए कहा है कि रसस्वरूप अर्थात् अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को मैं पुष्ट करता हूं।
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार हिंदू संस्कृति में आश्विन मास की पूर्णिमा का अपना विशेष महत्व है। शीतल चांदनी और उल्लास का यह पर्व धार्मिक दृष्टि से जितना महत्वपूर्ण है
उतना ही विशेष वैज्ञानिक रूप से भी है। पंडित वैभव शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व बताते हुए कहते हैं
कि शरद पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है,
जिससे चंद्रमा के प्रकाश की किरणें पृथ्वी पर स्वास्थ्य की बौछारें करती हैं
इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष प्रकार के लवण व विटामिन होते हैं।
कहा जाता है
कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से नाग का विष भी अमृत बन जाता है।
समझें दिवस विशेष के धार्मिक महत्व को
पंडित वैभव जोशी के अनुसार ऐसा माना जाता है
कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान शकर एवं मां पार्वती कैलाश पर्वत पर रमण करते हैं और संपूर्ण कैलाश पर्वत पर चंद्रमा जगमगा जाता है। भगवान कृष्ण ने भी शरद पूर्णिमा को रास-लीला की थी,
तथा मथुरा-वृंदावन सहित अनेक स्थानों पर इस रात को रास-लीलाओं का आयोजन किया जाता है।
लोग शरद पूर्णिमा को व्रत भी रखते हैं,
तथा शास्त्रों में इसे कौमुदी व्रत भी कहा गया है।
रावण करता था
नाभि में चंद्रमा की किरणों को धारण
पंडित वैभव जोशी धर्म ग्रंथों के आधार पर बताते हैं
कि लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि में ग्रहण करता था।
इस प्रक्रिया से उसे पुन: यौवन शक्ति प्राप्त होती थी।
चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है
और बसंत में निग्रह होता है।
चंद्र किरणों में खीर बन जाती है
अमृत
अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है।
यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। पंडित वैभव आगे बताते हैं
कि चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है।
इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है।
यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।
खीर से होता है
रोगों का इलाज
इसी प्रकार आयुर्वेद ज्ञाता विभिन्न प्रकार के रोगियों के लिए इस रात चंद्र किरणों में खीर तैयार करते है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ धीमी आंच पर चंद्र किरणों में खीर पकाने के लिए रखकर विविध प्रकार के खेल खेलते हैं एवं बौद्धिक के द्वारा ज्ञान बढ़ाते हैं।
रात को बारह बजे के पश्चात खीर के रूप में प्रसाद ग्रहण करते हैं। व्रत रखने वाले लोग चंद्र किरणों में पकाई गई खीर को अगले रोज प्रसाद के रूप में ग्रहण कर अपना व्रत खोलते है।
इस खीर के सेवन से रोगी को सांस और कफ दोष के कारण होने वाली तकलीफों में काफी लाभ मिलता है। रात्रि जागरण के महत्व के कारण ही इसे जागृति पूर्णिमा भी कहा जाता है। इसका एक कारण रात्रि में स्वभाविक कफ के प्रकोप को जागरण से कम करना है।
इस खीर को मधुमेह से पीडि़त रोगी भी ले सकते हैं,
बस इसमें मिश्री की जगह प्राकृतिक स्वीटनर स्टीविया की पत्तियों को मिला दें।
यह खीर विशेष ठंडक पहुंचाती है।
गाय के दूध की हो तो अति उत्तम, विशेष गुणकारी होती है।
इससे मलेरिया होने की संभावना नहीं के बराबर हो जाती है।
न करें मेवों का प्रयोग
ध्यान रखें कि इस ऋतु में बनाई खीर में केसर और मेंवों का प्रयोग न करें। पंडित वैभव के अनुसार मेवा और केसर गर्म प्रवृत्ति के होने से पित्त बढ़ा सकते हैं।
खीर में सिर्फ इलायची का ही प्रयोग करना चाहिए।
चेहरे पर आती है
कांति
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा का पूजन कर खीर का भोग लगाया जाता है,
जिससे आयु बढ़ती है व चेहरे पर कान्ति आती है
एवं शरीर स्वस्थ रहता है।
शरद पूर्णिमा की मनमोहक सुनहरी रात में वैद्यों द्वारा जड़ी बूटियों से औषधि का निर्माण किया जाता है।
पात्र का रखें ध्यान
शरद पूर्णिमा को रातभर पात्र में रखी खीर सुबह खाई जाती है
(चांदी का पात्र न हो तो चांदी का चम्मच खीर मे डाल दे,
लेकिन बर्तन मिट्टी, कांसा या पीतल का हो। क्योंकि स्टील जहर और एल्यूमिनियम, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी महा-जहर है)।
सौंदर्य और उल्लास का है
पर्व
पंडित वैभव जोशी कहते हैं
कि सौंदर्य व छटा से मन हर्षित करने वाली शरद पूर्णिमा की रात को नौका विहार करना, नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है। शरद पूर्णिमा की रात प्रकृति का सौंदर्य व छटा मन को हर्षित करने वाली होती है। विभिन्न प्रकार के पुष्पों की सुगंध इस रात में बढ़ जाती है,
जो मन को लुभाती है वहीं तन को भी मुग्ध करती है।
यह पर्व स्वास्थ्य, सौंदर्य व उल्लास बढ़ाने वाला माना गया है।
समझें ऋतु परिवर्तन के मर्म को
पंडित वैभव के अनुसार हमारी हर प्राचीन परंपरा में वैज्ञानिकता का दर्शन होता हैं। अज्ञानता का नहीं। शरद ऋतु के प्रारम्भ में दिन थोड़े गर्म और रातें शीतल हो जाया करती हैं।
आयुर्वेद के अनुसार यह पित्त दोष के प्रकोप का काल माना जाता है और मधुर तिक्त कषाय रस पित्त दोष का शमन करते हैं।
इस ऋतु में खीर खाने से पित्त का शमन होता है।
शरद में ही पितृ पक्ष (श्राद्ध) आता है
पितरों का मुख्य भोजन है 

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