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*सरकारी कार्यालय और उनका भ्रष्टाचार*

*सरकारी कार्यालय और उनका भ्रष्टाचार*


सूरज कुमार (लेखक व समाजसेवी)


आज आजादी के 71 वर्ष पूरे होने को है लेकिन आज भी भारत की गिनती विकसित देशों में नही को जाती । लेकिन आंकड़ो के अनुसार भारत की गिनती उन देशों में जरूर की जाती है जहाँ भ्रष्टाचार, अपराध , धूसख़ोरी, बलात्कार व घोटाले उच्च शिखर पर अपना स्थान बनाये हुए है।भ्रष्टाचार जैसी घातक बीमारी एक दीमक की तरह है, जो हमारे देश,हमारे समाज और हमारी संस्कृति को मन ही मन खोखला कर रही है। आज हमारे देश के कई हिस्से ऐसे  भुखमरी आतंकवाद और अपराध से पीड़ित है। भारत आज भी अशिक्षा जैसी बीमारी से ग्रसित है। तो सवाल यह उठता है कि सरकार ने आज तक कोई काम नही किया क्या? उत्तर यह है कि किया है लेकिन जो योजनाए  सरकार ने समाज की भलाई के लिए चलाई वह सिर्फ  आज तक कागजों पर ही रह गयी । क्योंकि उससे संबंधित अधिकारियों और नेताओं ने उस धन को जो देश और समाज के हित में खर्च होना चाहिए था। पैसा कहाँ गया? किसी को कुछ पता नही।  हाँ कागजों पर विकास चीख - चीख कर बता रहा कि मैं यहाँ हूँ। लेकिन जब उस जगह पर जाओ तो वहाँ मिट्टी या कुछ ईंटो के अलावा कुछ नही मिलेगा। यह भ्रस्टाचार की देन है। आज मैं आपको भ्रष्टाचार की एक संरचना  के जरिये यह बताने की कोशिश करूँगा की भ्रष्टाचार कैसे फैलता है।  जो हमारे देश के कर्ता - धर्ता हैं वह भ्रष्टाचार की जड़ है जिसके सानिध्य में यह फलता और फूलता है। आज भारत मे शायद ही कोई सरकारी कार्यालय हो जहाँ पर भ्रष्टाचार ने अपना स्वामित्व  न स्थापित किया हो। इस लिए जितने भी सरकारी दफ्तर हैं, वह भ्रष्टाचार के ब्रांच ऑफिस है। जहाँ  से भ्रष्टाचार केंद्र से होते हुए राज्य स्तर और फिर जनपदों तथा ब्लॉकों के द्वारा भारतीय समाज में फैलता है। जैसे वह भ्रष्टाचार नही कोई जन कल्याण योजना हो।  भ्रष्टाचार को जमीनी स्तर पर लाने का श्रेय सिर्फ एक ही व्यक्ति को जाता है जिसे छोटे शब्दों में पी0ए0 कहते हैं। जो अधिकारी और आम लोगो के बीच  मीडिएटर का कार्य करते है। इससे यह प्रतीत होता है कि वास्तव में असली मीडिया तो वहीं हैं। अभी हाल में ही हमारे एक मित्र संदीप(बदला हुआ नाम ) को  एक पत्रिका शुरू करने का विचार आया। उन्होंने आरएनआई की वेबसाइट पर पत्रिका रजिस्ट्रेशन से सम्बंधित दिशा निर्देश को पढ़ा और ऑनलाइन आवेदन कर दिया । और इसके बाद जिला मजिस्ट्रेट के दफ्तर में में आवेदन दिया। आवेदन देने के दो महीने बाद वह जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में सम्बंधित आवेदन की जानकारी के लिए पहुंचा। तो वहां पर कार्यरत बाबू ने ऐसा- वैसा बताकर टाल दिया। लगभग 10 दिन बाद वह फिर बाबू से मिला।  और सारा दिन बैठाये रहने बाद यह बताया कि सात दिन बाद आना अभी बाबूजी दूसरे कामों में व्यस्त है। यह सुनते सुनते लगभग तीन महीने बीत गए, और जो काम सिर्फ 20 दिन में हो जाना चाहिए था। वह प्रशासन के ढीले रवैये और भ्रष्टाचार की वजह से 3 महीनों में भी नही हो पाया। और फिर जब संदीप ने रोज कार्यालय के चक्कर लगाने शुरू किए तो उन्ही बाबू के पी0ए0 ने बताया कि आपका काम तब तक नही हो पायेगा जब तक कि कुछ चाय पानी का प्रबंध नही हो जाता। ये मामला कोई एक नही इस तरह के लाखों मामले जो आज तक सरकारी दफ्तरों में लंबित पड़े हुए है। कई ऐसे लोग है जो सरकारी दफ्तरों और बाबुओं के चक्कर लगा - लगा कर थक कर बैठ गए या तो उन्होंने अधिकारियों के चाय - पानी का प्रबंध कर दिया। एक सवाल जो करोडों देश वासियों के जहन में उठता है कि क्या ऐसा कोई नियम नही बनाया जा सकता जिससे संबंधित अधिकारी  फाइलों का निस्तारण समय - सीमा के अनुरूप करे, और अगर अधिकारी संबंधित किसी भी फाइल का निस्तारण तय समय - सीमा के अनुसार न हो तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही के निर्देश हो।


सूरज कुमार डीह, डीह उन्नाव

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