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एकात्म मानववाद के प्रेणता महामना दीनदयाल

 एकात्म मानववाद के प्रेणता महामना दीनदयाल


( हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व विचारक )

      युग दृष्टा, कर्मयोगी और सामाजिक चिंतक पं. दीनदयाल उपाध्याय का जीवन दर्शन हम सबके के लिए प्रेरणादायी हैं। वह कपटरहित, निष्ठावान व्यक्तित्व और राष्ट्रीय कृतित्व से अभिभूत भारत माता के सच्चे पुजारी थे। उनके बुद्धि कौशल व राजनैतिक चातुर्य और निस्वार्थ देशप्रेम के भाव से ही वे गंगा समान पवित्र हृदय, शांत, शालीन व कई बार गहरे जल सदृश्य खामोश नजर आते थें। सादगी पंडित जी का एक महत्वापूर्ण जीवन-मूल्य था। सादा रहन-सहन और उच्च-विचार महान पुरूषों का एक लक्षण माना गया हैं। वही भाव दीनदयाल जी के रहन-सहन-पोशाक और बहुत ही सादगी भरे मर्मस्पर्शी जीवन में समाहित था। उल्लेखनीय बात यह है कि सब वे अकृत्रिमता से करते थे।
    यथार्थ, दीनदयाल दर्शन कागज का टुकडा नहीं हैं, जो जर-जर हो सके। अभिष्ट ही राष्ट्रपिता की स्वदेशी से ग्रामोदय और दीनबंधु दीनदयाल के अन्त्योदय से सर्वोदय की परिकल्पना भारतीय जीवन का मूलाधार है। अभिभूत, एक चिंतक, प्रखर साहित्यकार और श्रेष्ठ पत्रकार के अतिरिक्त सही मायने में मानव शिल्पी भी थे दीनबंधु दीनदयाल। अलौकिक किसी प्रकार का भौतिक माया-मोह उन्हें छू तक नहीं सका। विलक्षण बुद्धि, सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के बहुतेरे गुणों के इस स्वामी ने भारत वर्ष में समतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार व प्रोत्साहन करते हुए सिर्फ 52 साल की उम्र में अपने प्राण राष्ट्र को समर्पित कर दिए। तब इनकी आकस्मिक मृत्यु पर देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने दुख प्रकट करते हुए कहा था ‘‘सूर्य ढल गया, अब हमें तारों के प्रकाश में मार्ग खोजना होगा।’’                
     स्तुत्य, मॉं भारती के लाल दीनदयाल जीवनपर्यन्त राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुडकर भारत की राजनीति में एक दिशा-निर्देशक उज्जवल प्रकाशपुंज की तरह दीप्तमान रहे। राष्ट्रजीवन दर्शन के निर्माता दीनदयाल का उद्देश्य स्वतंत्रता की पुर्नरचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्व-दृष्टि प्रदान करना था। मूल विचारक के रूप में एकात्म मानववाद के प्रेणता, सर्वप्रथम प्रतिपादक महामना दीनदयाल ने आधुनिक राजनीति, अर्थव्यवस्था तथा समाज रचना के लिए एक चतुरंगी भारतीय धरातल प्रस्तुत किया है। निःसंदेह ‘एकात्म मानववाद’ के रूप में दीनदयाल उपाध्याय का मूलगामी चितंन भारतीयों का उसी पथ पर प्रशस्त करता रहेगा। जिस प्रकार प्राचीनकाल में आचार्य चाणक्य का ‘अर्थशास्त्र’ और आधुनिक काल में लोकमान्य तिलक का ‘गीता रहस्य’ व महात्मा गांधी का ‘ग्राम स्वराज’।
       अविरल, ‘एकात्म मानववाद’ दर्शन से अविभूत सरकारों ने अंतिम छोर तक सबसे नीचे और सबसे पीछे मौजूद व्यक्ति तक जनकल्याणकारी योजनाओं को पहुंचाने जी-जान से जुटी हुई हैं। फलीभूत आच्छादित परिणाम अवतरित होने लगे है। कालजयी अमेरिका जैसे त्वरित, उच्च शिक्षित और विकसित देश ने ‘एकात्म मानववाद’ दर्शन के ऊपर शोध किया  है, कि आज से 6 दशक पूर्व बुनियादी, समावेशी, र्स्वस्पर्शी, अलौकिक और वैचारिक विकल्प कैसे प्रस्तुत कर दिया। परणिती में निकले सारांश को आपने प्रबंधन, उत्तरदायित्वों, जनाभिमुख कार्यक्रमों और शैक्षणिक प्रणाली का अविभाज्य अंग बना लिया। इधर हमारे देश में अपने दीनदयाल के ज्ञाननिष्ठा, श्रमनिष्ठा और वीरता व धीरता को राजनैतिक चोला ओडाने का कुठिंत प्रयास किया जाते रहा है। 
      जनसंघ ने दिसम्बर 1967 में दीनदयाल उपाध्याय को अपना अध्यक्ष बनाया वे केवल 40 दिन अध्यक्ष रहे। 25 सितंबर 1916 को जन्मे दीन-बंधु दीनदयाल की 10 फरवरी 1968 की अर्धरात्रि में मुगल सराय स्टेशन पर दुर्भाग्यवश हत्या कर दी गई। वह हत्या आज भी रहस्यमय बनी हुई हैं कि ऐसे देशभक्त महामानव की जीवन लीला को किस विचार, संगठन और व्यक्ति ने हैवानियत से ओत-प्रोत होकर शांत कर दी। पर वह दरिंदे यह भूल गये कि पंडित जी की आत्मा उनके शरीर में नहीं वरन् विचारधारा में बसती थी यह क्षण-भंगुर नहीं, जिसके अस्तित्व को समाप्त किया जा सके, जो आज भी दैदीप्यमान हैं। जो सदा अमर और अमिट रहकर एक दीनदयाल नहीं अपितु हजारों दीनदयाल के रूप में क्षण-क्षण राष्ट्र को समर्पित होते रहेगी। प्रत्युत, दीनदयाल दर्शन की शाश्वतता को कोई नकार नहीं सका यह सदा-सर्वदा चिरायमान और स्मरणीत रहेंगा। अर्मत्य, माँ भारती के लाल, दीनबंधु दीनदयाल की मीमांसा और प्रेरणा एकात्म मानववाद राष्ट्र के परम् वैभव का प्रशस्त पुण्य पंथ हैं।

  हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व विचारक

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