रानी लक्ष्मीबाई और इंदिरा गांधी !
भारत की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नायिका – रानी लक्ष्मीबाई और भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दोनों ही बहादुर धर्म निरपेक्ष महिलाओं के जन्म दिवस पर कृतज्ञ राष्ट्र की श्रृध्दांजलि।
देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली बहादुर धर्म निरपेक्ष रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी। आज वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं।
वर्तमान में आपसी अविश्वास और दोषारोपण, न केवल देश में कई समस्याऐं खड़े कर रहा है, बल्कि देश और समाज को कमज़ोर भी कर रहा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और शौर्य की बेमिसाल कहानी -साम्प्रदायिक सौहार्द और आपसी विश्वास की दास्तान भी है।
वक़्त का तक़ाज़ा है कि हम रानी झांसी, ख़ुदा बख़्श और ग़ुलाम ग़ौस खां के आपसी विश्वास और भाई चारे से शिक्षा और प्रेरणा लेकर आपस में इसे और बढायें और देश को मज़बूत कर विश्व गुरु बनने में अपना सक्रिय सहयोग प्रदान करें।
भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बहादुर धर्म निरपेक्ष इंदिरा प्रियदर्शनी गाँधी न केवल भारतीय राजनीति पर छाई रहीं, बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी वह विलक्षण प्रभाव छोड़ गईं और "लौह महिला" कहलाई।
आज इंदिरा गांधी को सिर्फ इस कारण नहीं जाना जाता कि वह पंडित जवाहरलाल नेहरु की बेटी थीं बल्कि वह अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता के लिए 'विश्वराजनीति' के इतिहास में हमेशा जानी जाती रहेंगी।
बीबीसी पर रेहान फ़ज़ल ने एक रिपोर्ट में बताया,” भला ये कैसे हो सकता है कि एक प्रधानमंत्री ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाकर धर्मभीरू सिखों को आहत कर दिया हो और जब खुफिया रिपोर्ट उनकी टेबल पे आए कि सिख सुरक्षाकर्मी उनकी जान के लिए ख़तरा हो सकते हैं तो प्रधानमंत्री उस फाइल पर सिर्फ तीन शब्द लिखें- Aren't we secular? क्या हम धर्म निरपेक्ष नहीं हैं?”
इतना बड़ा दिल, इतनी हिम्मत और देश की संस्कृति और इसके मिजाज़ के समझने का ऐसा नज़रिया सिर्फ इंदिरा गांधी के पास हो सकता था, जिन्होंने अपना बचपन बापू के साए में बिताया था। वो जानती थीं कि अगर धर्म के नाम पर उन्होंने सिख सुरक्षाकर्मियों को अपनी सिक्योरिटी से हटाया तो इतिहास हमेशा ये लिखेगा कि देश के प्रधानमंत्री ने धर्म के नाम पर अपने सुरक्षा गार्डों से भेदभाव किया। ये जानते हुए कि तत्कालीन परिस्थितियों में उनकी जान को गंभीर खतरा है, उन्होंने राजधर्म का पालन किया। ये मामूली बात नहीं है।
उनकी कमी देश ही नहीं, विश्व आज भी महसूस कर रहा है। उनके क़द का राजनेता आज दूर दूर तक दिखाई नहीं देता ।
और अंत मे यशस्वी प्रधानमंत्री और अटल जी के शब्दों में -दुर्गा- यानी स्वर्गीय इंदिरा गांधी को मेरा नमन।
देश का नाम दुनिया में रोशन करने वाली, ऐसी दोनों अज़ीम शख़्सियतों को लाखों सलाम।
सैयद शहनशाह हैदर आब्दी
समाजवादी चिंतक-झांसी।
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