रेलमपेल रेल से मेलजोल
(हेमेन्द्र क्षीरसागर, लेखक व विचारक)
भारतीय रेल हमारे आवागमन का आधार स्तंभ है। इसके बिना जीवन की परिक्रमा अधूरी रहती क्योंकि इस धूरी से उस धूरी की दूरी तय करने में लौहपथगामिनी का कोई शानी नहीं है। कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कोहिमा तक फैले भारत वर्ष को हमारी रेल ने एक बना के रखा है। सही मायनों में यह विकसित भारत की प्रथम सीढी है। जिसपे चढकर हर कोई मंजिल पार परना चाहता है। वे किस्मत वाले जिन्हें आसानी से रेल्वे की सुविधा मुहैया होती है। इतर ऐसे बदनसीबों की भी कमी नहीं जो इंतजार में आजतक आश लगाए बैठे है की देर सबेर ही सही रेल के हमराही बनेंगे। किन्तु घूटन भरी जिंदगानी का भ्रमण घर्षण करते-करते बीत गया बावजूद बेखबरों को असर नहीं हुआ।
ऊहाफोह में उम्मीदों पर पानी फिरता है तो मन आह्लदित होता है कुछ ऐसा ही वाक्यां घटित हुआ जब रेल्वे ने 12 मई को पुरी से इंदौर के बीच एक महत्वकांक्षी साप्ताहिक ट्रेन 19317 व 19318 हमसफर एक्सप्रेस को पटरी पर दौडाना चालु किया। लेकिन दुर्भाग्यवश इसके सफर का हमसफर बनना गोंदिया के साथ बालाघाट वासियों के नसीब में नहीं है, क्योंकि यह ट्रेन गोंदिया से गुजरने के बावजूद यहां रूखेंगी नहीं। याने कि राजनांदगांव- नागपुर के मध्य इस ट्रेन का स्टॉपेज कहीं नहीं होना ये मर्ज को बढाने के आलावा और कुछ नहीं है। आखिर! ऐसा पछपात हमारे साथ क्यों किया गया ये समझ से परे है। कुटाराघात की पीडा दुखदायी है, जिम्मेंदार मदमस्त और कर्णधार बेग्रस्ती की कुंभकरणीय नींद में यात्रियों को मिल रही बेबुनियाद जुर्म की सजा अबूझ है नाकि सूझबूझ। होती तो आधुनिक, नवीनतम और तकनीकी के दौर में रेलमपेल रेल से वंचितों का भी मेलजोल बढ जाता। अमलीजामा हो जाए तो क्यां कहने चंहुओर बहार आ जाएगी बाजी अब सियासतदारों के हाथों में है कि आम जनमानस को सुविधा देते है या दुविधा?
दरअसल, एक तो हम बालाघाट वासी वैसे ही ब्राडगेज के दिव्यस्वप्न से उबर नहीं पाए है। कुछ सुविधा मुक्मल है पर सीधे महानगरों के लिए रेल्वे के पात नहीं है। इस व्यथा में दुबले पर दो आसाढ की भांति हम हमसफर एक्सप्रेस के सफर से महरूम हो गए। लगता है ऐसी सोहलतें व मोहलतें हमारे लिए नहीं है। तभी तो हम अफसरशाही और लालफिताशाही के चक्कर में हमसफर के मुसाफिर नहीं बन पाने का दंश भोगने मजबूर हैं। असलियत कहें या विडंबना हकीकत तो यहीं बयां करती है। लिहाजा, समनापुर-नैनपुर और कटंगी-तिरोडी की लेटलतीफी परवान चढ चुकी है। उफान में सीधी रेल सेवा दूर की कौडी लगने लगी है। दुर्दशा के आलम आवाजाही भगवान भरोसे है। अलबत्ता फिक्रमंदी में कोई सुध लेने वाला नहीं है या लेना चाहते नहीं किवां इनकी सुनवाई होती नहीं। हालात तो ऐसे ही दिखाई पढते है तभी मंजर का खंजर जन-पथ को लहूलुहान कर रहा है।
अंततः वक्त की नजाकत को समझते हुए रेलमपेल रेल से देश का मेलजोल बढाना ही सर्वहितकारी कदम होगा। बेहतर, अब नहीं जागे तो कब की तर्ज पर बेगर्द हुकूमरानों व अफसरानों को अपना फर्ज निभाना पडेगा। वरना आने वाली पुस्तें इन्हें कभी माफ नहीं करेंगी। बारी में बरसों से रेंग रही ब्राडगेज लाइनों को जल्द पूर्ण करवाकर सरपट ट्रेनें दौडा दो। फौरी तौर पर गोंदिया में हमसफर एक्सप्रेस का स्टापेज करवाकर बालाघाट व गोंदिया जिला के राहगिरों की विपद यात्रा सुलभ बनाने में हमराह बनो। वह भी एक दिन नहीं बल्कि प्रतिदिन तब जाकर मंगलमय अधूरा सफर पूरा होगा। उत्तरोक्तर प्रस्तावित मार्गो पर ब्राडगेजीकरण और दोहरीकरण धरातलीय बने। लगे हाथ औरों बे-रूखी ट्रेनों के पहिये गोंदिया में थमे और भगत की कोठी की सवारी रोज करने मिलने जाए तो आपका मतलब है वरना शोभा की सुपारी के अलावे आप कुछ नहीं कहलाएंगे अब मर्जी आपकी?
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