रिपोर्ट - मिंटू सिंह
साहित्य महोत्सव के निराला प्रेक्षागृह में उपन्यास
मदारीपुर जंक्शन’ का मंचन हुआ
उन्नाव--
बालेन्दु द्विवेदी लिखित उपन्यास ‘मदारीपुर जंक्शन’ का मंचन दिनांक 30-04-18 को उन्नाव साहित्य महोत्सव के निराला प्रेक्षागृह में संपन्न हुआ।नाटक का निर्देशन ‘दि थर्ड बेल’ संस्था के प्रसिद्ध रंगकर्मी और निर्देशक आलोक नायर ने किया।आलोक के तमाम सहकर्मियों में सहनिर्देशन-अभिषेक मिश्रा,वस्त्र विन्यास-गौरव शर्मा ,संगीत निर्देशन ऋतिका अवस्थी,रूपसज्जा-संजय चौधरी का रहा।नाटक के प्रमुख किरदारों में सचिन चंद्रा,राममणि त्रिपाठी,देवेंद्र राजभर,गौरव शर्मा,आशू कपूर,नीतू आनंद,अभिषेक मिश्रा,संध्या शुक्ला,कौस्तुभ पांडे,मनोज पाठक,आकाश श्रीवास्तव आदि रहे।
उपन्यासकार बालेन्दु द्विवेदी ने बताया कि उपन्यास अपने ग्रामीण कलेवर में कथा के प्रवाह के साथ विविध जाति-धर्मों के ठेकेदारों की चुटकी लेता और उनके पिछवाड़े में चिंगोटी काटता चलता है।वस्तुतः उपन्यास के कथानक के केंद्र में पूर्वी उत्तर प्रदेश का मदारीपुर-जंक्शन नामक एक गाँव है जिसमें एक ओर यदि मदारीमिज़ाज चरित्रों का बोलबाला है तो दूसरी ओर यह समस्त विद्रूपताओं का सम्मिलन-स्थल भी है।इस लिहाज़ से मदारीपुर-जंक्शन अधिकांश में सामाजिक विसंगतियों-विचित्रताओं का जंक्शन है।
मदारीपुर पट्टियों में बँटा है।अठन्नी, चवन्नी और भुरकुस आदि पट्टियों में।यहां लोगों की आदत है हर अच्छे काम में एक दूसरे की टांग अड़ाना। लतखोर मिजाज और दैहिक शास्त्रार्थ में यहां के लोग पारंगत हैं। गांव है तो पास में ताल भी है जो जुआरियों का अड्डा है। पास ही मंदिर है जहां गांजा क्रांति के उदभावक पाए जाते हैं।
हर उपन्यास की एक केंद्रीय समस्या होती है।जैसे हर काव्य का कोई न कोई प्रयोजन ।मदारीपुर जंक्शन के भी केंद्र में परधानी का चुनाव है।यहां परधानी के चुनाव में बुनियादी तौर से दो दल हैं एक छेदी बाबू का दूसरा बैरागी बाबू का। पर चुनाव के वोटों के समीकरण से दलित वर्ग का चइता भी परधानी का ख्वाब देखता है और भगेलू भी। पर दोनों छेदी और बैरागी के दांव के आगे चित हो जाते हैं। चइता को छेदी के भतीजे ने मार डाला तो बेटे पर बदलू शुकुल की लडकी को भगाने के आरोप में भगेलू को नीचा देखना पड़ा ।पर राह के रोड़े चइता व भगेलू के हट जाने पर भी परधानी की राह आसान नहीं। हरिजन टोले के लोग चइता की औरत मेघिया को चुनाव में खड़ा कर देते हैं । दलित चेतना की आंच सुलगने नहीं बल्कि दहकने लगती है जिसे सवर्ण जातियां बुझाने की जुगत में रहती और संयोग देखिए कि वह दो वोट से चुनाव जीत जाती है। पर चइता की मौत की ही तरह उसका अंत भी बहुत ही दारुण होता है। लिहाजा जब जीत की घोषणा सुन कर पिछवाड़े पति की समाधि पर पहुंचती है पर जीत कर भी हरिजन टोले के सौभाग्य और स्वाभिमानी पीढ़ी को देखने के लिए जिन्दा नही रहती। शायद आज का कठोर यथार्थ यही है।
आज गांव किस हालात से गुजर रहे हैं, यह उपन्यास इसका जबर्दस्त जायज़ा लेता है।
कुल मिला कर दुरभिसंधियों में डूबे गांवों के रूपक के रुप में मदारीपुर जंक्शन इस अर्थ में याद किया जाने वाला उपन्यास है कि दलित चेतना को आज भी सवर्णवादी प्रवृत्तियों से ही हांका जा रहा है। सबाल्टर्न और वर्गीय चेतना भी आजादी के तीन थके हुए रंगों की तरह विवर्ण हो रही है। गांवों को सियासत ने बदला जरूर है पर गरीब दलित के आंसुओं की कोई कीमत नहीं।
‘दि थर्ड बेल’ के कलाकारों ने नाटक के माध्यम से कथानक के चरित्रों को जीवंत कर दिया और दर्शकों की ख़ूब वाहवाही और तालियाँ बटोरीं।कार्यक्रम में बॉलीबुड के ,बन्नो तेरा स्वैगर' और 'मुश्किल है अपना मेल प्रिये' जैसे गानों से मशहूर हुए पार्श्वगायक बृजेश शांडिल्य,उड़ान सीरियल की अभिनेत्री ऋचा पाठक,डॉक्टर मृदुला पंडित,रंगकर्मी विजय पंडित सहित शहर के अन्य गणमान्य उपस्थित रहे।
नाटक के निर्देशक आलोक नायर ने बताया कि इसके पहले वे इस नाटक का इलाहाबाद,लखनऊ आदि में सफल मंचन कर चुके हैं।उनकी योजना इसे देश के विभिन्न शहरों और देश के बाहर काठमांडू,मारीशस, यूएसए आदि में मंचित करने की है।
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