रिपोर्ट - मोहित मिश्रा
फतेहपुर चौरासी /उन्नाव
भगवान श्री कृष्ण अपने हर भक्त की पुकार पर पहुँचते हैं। प्रभू ने रुकमड़ी का संदेश पाकर उनसे विवाह के लिए विदर्भ पहुँच कर उनका हरण कर विवाह किया।
उक्त बातें क्षेत्र के अख्त्यारपुर गाँव के निकट स्थित माँ मंशादेवी मन्दिर परिसर में श्री विष्णु महायज्ञ कार्यक्रम में हो रही भगवत कथा में भगवताचार्य पण्डित रामलखन तिवारी ने रुकमड़ी विवाह का प्रसंग श्रोताओं को श्रवण कराते हुए कहीं । भगवताचार्य ने कहा कि माता लक्ष्मी ने ही रुकमड़ी के रूप में जन्म लिया था ।भगवान कृष्ण और उनके बड़े भाई बलदाऊ कि प्रसंसा चारों तरफ फैल रही थी उसी समय विदर्भ राज्य में राजा भीष्मक का शासन चलता था राजा भीष्मक के पांच पुत्र व एक पुत्री थी पुत्री का नाम रुकमड़ी था । रुकमड़ी के रूप व तेज को देखकर सभी उन्हें माता लक्ष्मी का स्वरुप मानते थे राजा भीष्मक का पुत्र शिशुपाल जो भगवान कृष्ण को अपना शत्रु मानता था और उनसे शत्रुता रखता था उसने अपने पिता से कहकर रुकमड़ी का विवाह तय कर दिया था। अपने विवाह की बात सुनकर रुकमड़ी बहुत दुखी हो गई थी । भगवताचार्य ने कहा कि उन्होंने अपने विवाह की बात का संदेश एक पत्र के माध्यम से एक ब्राहमण के द्वारा भगवान श्री कृष्ण तक पहुँचाया था । उसमे लिखा था कि हे नंदलाल मैं अपने मन ही मन आपको पति के रूप में मान चुकी हूं इसलिय मैं आपके आलावा किसी अन्य पुरुष से विवाह नहीं कर सकती तथा मेरी इच्छा के बिना ही मेरे भाई मेरा विवाह अन्य कहीं करना चाहते है और उन्होंने लिखा कि हमारे कुल में जिस किसी का भी विवाह होता है वह विवाह से पूर्व नगर के बाहर बने माँ गिरजा मंदिर दर्शन के लिए जरूर जाता है । मैं भी वहां दर्शन करने जाउंगी तो आप वहां आकर मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें अन्यथा में अपने प्राणों का त्याग कर दूंगीं। जब भगवान श्री कृष्ण को यह सन्देश मिला तो वह तुरंत अपने रथ पर सवार होकर रुकमड़ी को लेने के लिए निकल पड़े उन्होंने अपने रथ में उस ब्राह्मण को भी बिठा लिया। वहीं दूसरी तरफ रुकमड़ी विवाह में पहने जाने वाले वस्त्रों को धारण कर मंदिर पहुंची वहां कृष्ण को न पाकर उन्होंने माता गिरजा से भगवान श्री कृष्ण को पति के रूप में पा जाने कि प्रार्थना करने लगी।जैसे ही पूजा खत्म करके रुकमड़ी मंदिर से बाहर निकली उनकी नजर उस ब्राह्मण पर पहुंची जिसे उन्होंने श्री कृष्ण के पास संदेश देकर भेजा था उस ब्राहमण को देख उन्हें समझने में जरा भी देर नही लगी कि श्री कृष्ण उन्हें लेने के लिए आ गए है । जैसे ही वह अपने रथ में बैठने के लिए आगे बढ़ी श्री कृष्ण ने उनका हांथ खींच कर अपने रथ में बैठा लिया और द्वारका के लिए हवा की रफ्तार से निकल पड़े तथा द्वारका पहुंचकर पूरे विधि विधान के साथ अपना विवाह रुकमड़ी के साथ कर लिया। रुकमड़ी विवाह का कथा श्रवड़ श्रोता भाव विभोर हो गये। बताते चले मंशा माता मन्दिर में पुरुषोत्तम माह में विष्णु महायज्ञ मन्दिर समिति द्वारा आयोजित किया गया है। महायज्ञ वेदाचार्य अरविन्द द्विवेदी आदि द्वारा पूर्ण कराया जा रहा है। महायज्ञ में यज्ञ कुण्ड की परिक्रमा करने के लिए प्रतिदिन क्षेत्र के भारी संख्या में श्रद्धालु पहुँच रहें हैं ।
रुकमड़ी विवाह का प्रसंग की हुई चर्चा
फतेहपुर चौरासी /उन्नाव
भगवान श्री कृष्ण अपने हर भक्त की पुकार पर पहुँचते हैं। प्रभू ने रुकमड़ी का संदेश पाकर उनसे विवाह के लिए विदर्भ पहुँच कर उनका हरण कर विवाह किया।
उक्त बातें क्षेत्र के अख्त्यारपुर गाँव के निकट स्थित माँ मंशादेवी मन्दिर परिसर में श्री विष्णु महायज्ञ कार्यक्रम में हो रही भगवत कथा में भगवताचार्य पण्डित रामलखन तिवारी ने रुकमड़ी विवाह का प्रसंग श्रोताओं को श्रवण कराते हुए कहीं । भगवताचार्य ने कहा कि माता लक्ष्मी ने ही रुकमड़ी के रूप में जन्म लिया था ।भगवान कृष्ण और उनके बड़े भाई बलदाऊ कि प्रसंसा चारों तरफ फैल रही थी उसी समय विदर्भ राज्य में राजा भीष्मक का शासन चलता था राजा भीष्मक के पांच पुत्र व एक पुत्री थी पुत्री का नाम रुकमड़ी था । रुकमड़ी के रूप व तेज को देखकर सभी उन्हें माता लक्ष्मी का स्वरुप मानते थे राजा भीष्मक का पुत्र शिशुपाल जो भगवान कृष्ण को अपना शत्रु मानता था और उनसे शत्रुता रखता था उसने अपने पिता से कहकर रुकमड़ी का विवाह तय कर दिया था। अपने विवाह की बात सुनकर रुकमड़ी बहुत दुखी हो गई थी । भगवताचार्य ने कहा कि उन्होंने अपने विवाह की बात का संदेश एक पत्र के माध्यम से एक ब्राहमण के द्वारा भगवान श्री कृष्ण तक पहुँचाया था । उसमे लिखा था कि हे नंदलाल मैं अपने मन ही मन आपको पति के रूप में मान चुकी हूं इसलिय मैं आपके आलावा किसी अन्य पुरुष से विवाह नहीं कर सकती तथा मेरी इच्छा के बिना ही मेरे भाई मेरा विवाह अन्य कहीं करना चाहते है और उन्होंने लिखा कि हमारे कुल में जिस किसी का भी विवाह होता है वह विवाह से पूर्व नगर के बाहर बने माँ गिरजा मंदिर दर्शन के लिए जरूर जाता है । मैं भी वहां दर्शन करने जाउंगी तो आप वहां आकर मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें अन्यथा में अपने प्राणों का त्याग कर दूंगीं। जब भगवान श्री कृष्ण को यह सन्देश मिला तो वह तुरंत अपने रथ पर सवार होकर रुकमड़ी को लेने के लिए निकल पड़े उन्होंने अपने रथ में उस ब्राह्मण को भी बिठा लिया। वहीं दूसरी तरफ रुकमड़ी विवाह में पहने जाने वाले वस्त्रों को धारण कर मंदिर पहुंची वहां कृष्ण को न पाकर उन्होंने माता गिरजा से भगवान श्री कृष्ण को पति के रूप में पा जाने कि प्रार्थना करने लगी।जैसे ही पूजा खत्म करके रुकमड़ी मंदिर से बाहर निकली उनकी नजर उस ब्राह्मण पर पहुंची जिसे उन्होंने श्री कृष्ण के पास संदेश देकर भेजा था उस ब्राहमण को देख उन्हें समझने में जरा भी देर नही लगी कि श्री कृष्ण उन्हें लेने के लिए आ गए है । जैसे ही वह अपने रथ में बैठने के लिए आगे बढ़ी श्री कृष्ण ने उनका हांथ खींच कर अपने रथ में बैठा लिया और द्वारका के लिए हवा की रफ्तार से निकल पड़े तथा द्वारका पहुंचकर पूरे विधि विधान के साथ अपना विवाह रुकमड़ी के साथ कर लिया। रुकमड़ी विवाह का कथा श्रवड़ श्रोता भाव विभोर हो गये। बताते चले मंशा माता मन्दिर में पुरुषोत्तम माह में विष्णु महायज्ञ मन्दिर समिति द्वारा आयोजित किया गया है। महायज्ञ वेदाचार्य अरविन्द द्विवेदी आदि द्वारा पूर्ण कराया जा रहा है। महायज्ञ में यज्ञ कुण्ड की परिक्रमा करने के लिए प्रतिदिन क्षेत्र के भारी संख्या में श्रद्धालु पहुँच रहें हैं ।
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