रिपोर्ट- अंकिता पाल
भात मांगते मांगते मर गयी संतोषी
झारखण्ड-
झारखंड के सिमडेगा जिले के करीमती गांव में 9 महीने पहले 14 साल की संतोषी की भूख से मौत हो गई थी। जिसके बाद हरकत में आई सरकार ने उसके घर में राशन सुविधा को सुनिश्चित करवाया। जबकि पहले आधार से राशन कार्ड लिंक ना होने के कारण राशन दुकानदार ने उसके परिवार को राशन देने से मना कर दिया। लेकिन अब 9 महीने में उसके घर का माहौल काफी बदल गया है। संतोषी की बड़ी बहन जानकी देवी अब साप्ताहिक बाजार से सब्जी लाती हैं। वहीं उसकी छोटी बहन चंदो का कहना है, 'पहले हम रोजाना नहीं खाते थे लेकिन अब हम रोजाना कुछ जरूर खाते हैं। कभी तो दाल भी। संतोषी के घर में खाना अब कोई मुद्दा नहीं रह गया है। मिट्टी से बने अब उसके घर में एक दरवाजा है जिसमें टीन की शीट लगी हुई है। अब उसके घर में एलपीजी कनेक्शन के साथ ही घर के बगल में शौचालय बना हुआ है। हालांकि पानी अब भी बाहर से ही लाना पड़ता है। राशन डीलर को अब उनके गांव के पास स्थापित कर दिया गया है। वहीं अभी भी सरकार इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि संतोषी की मौत भूख से हुई है। सरकार का कहना है कि उसकी मौत बीमारी की वजह से हुई है। जबकि 14 साल की युवती की मौत से 6 महीने पहले से ही उसके परिवार को राशन नहीं मिल रहा था। ठीक इसी तरह का दावा राज्य सरकार ने सावित्री देवी की मौत पर भी किया था, जिसकी 2 जून को गिरिडीह जिले के मंगरगड्ढी गांव में मौत हो गई थी। उसका परिवार राशन कार्ड बनवाने की प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाया था। इसके बावजूद सरकार की जांच कहती है कि सावित्री की मौत घर में खाना ना होने की बजाए एक पुरानी बीमारी के चलते हुई है। संतोषी की मौत से पहले उसकी मां कोयली और बेटी गुड़िया जंगल जाकर लड़कियां बीनने का काम करती थीं, जिसे वह पास के लचरागढ़ बाजार में बेचकर पैसा कमाते थे। इससे उन्हें हर दूसरे या तीसरे दिन बमुश्किल 100 रुपए मिला करते थे। जिससे वह केवल चावल खरीद पाते थे। जानकी का कहना है कि जिंदगी अभी भी मुश्किल है लेकिन नियमित तौर पर राशन मिलने से हमें एक महत्वपूर्ण सहायता मिल जाती है। इससे हमें उस समय काफी मदद मिलती है जब कोई काम नहीं मिलता।
झारखंड के सिमडेगा जिले के करीमती गांव में 9 महीने पहले 14 साल की संतोषी की भूख से मौत हो गई थी। जिसके बाद हरकत में आई सरकार ने उसके घर में राशन सुविधा को सुनिश्चित करवाया। जबकि पहले आधार से राशन कार्ड लिंक ना होने के कारण राशन दुकानदार ने उसके परिवार को राशन देने से मना कर दिया। लेकिन अब 9 महीने में उसके घर का माहौल काफी बदल गया है। संतोषी की बड़ी बहन जानकी देवी अब साप्ताहिक बाजार से सब्जी लाती हैं। वहीं उसकी छोटी बहन चंदो का कहना है, 'पहले हम रोजाना नहीं खाते थे लेकिन अब हम रोजाना कुछ जरूर खाते हैं। कभी तो दाल भी। संतोषी के घर में खाना अब कोई मुद्दा नहीं रह गया है। मिट्टी से बने अब उसके घर में एक दरवाजा है जिसमें टीन की शीट लगी हुई है। अब उसके घर में एलपीजी कनेक्शन के साथ ही घर के बगल में शौचालय बना हुआ है। हालांकि पानी अब भी बाहर से ही लाना पड़ता है। राशन डीलर को अब उनके गांव के पास स्थापित कर दिया गया है। वहीं अभी भी सरकार इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि संतोषी की मौत भूख से हुई है। सरकार का कहना है कि उसकी मौत बीमारी की वजह से हुई है। जबकि 14 साल की युवती की मौत से 6 महीने पहले से ही उसके परिवार को राशन नहीं मिल रहा था। ठीक इसी तरह का दावा राज्य सरकार ने सावित्री देवी की मौत पर भी किया था, जिसकी 2 जून को गिरिडीह जिले के मंगरगड्ढी गांव में मौत हो गई थी। उसका परिवार राशन कार्ड बनवाने की प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाया था। इसके बावजूद सरकार की जांच कहती है कि सावित्री की मौत घर में खाना ना होने की बजाए एक पुरानी बीमारी के चलते हुई है। संतोषी की मौत से पहले उसकी मां कोयली और बेटी गुड़िया जंगल जाकर लड़कियां बीनने का काम करती थीं, जिसे वह पास के लचरागढ़ बाजार में बेचकर पैसा कमाते थे। इससे उन्हें हर दूसरे या तीसरे दिन बमुश्किल 100 रुपए मिला करते थे। जिससे वह केवल चावल खरीद पाते थे। जानकी का कहना है कि जिंदगी अभी भी मुश्किल है लेकिन नियमित तौर पर राशन मिलने से हमें एक महत्वपूर्ण सहायता मिल जाती है। इससे हमें उस समय काफी मदद मिलती है जब कोई काम नहीं मिलता।
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